Friday, November 28, 2014

Personality (शख्शियत)






जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,
एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।
और....
जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।
-
जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।
और….
जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।
-
 
जब भी अपनी दौलत का अभिमान हो,
बाढ़ भूकम्प वाले क्षेत्र से होके आ जाना,
और….
जब भी आपको गरीबों पर दया आये,
इंसानियत का फ़र्ज़ जरूर निभा आना।
-
जब अपने रंग-रूप पर बहुत नाज हो,
तो 60-70 की हीरोइनों से मिल आना।
और....
जब भी कभी बच्चों से प्यार हो,,
उन्हें उठाकर दिल से जरूर लगा लेना।
-
जब भी अपने शरीर पर अभिमान हो,
एक फेरा अस्पताल का लगा आना,
और....
जब किसी अपाहिज को देखके दर्द हो,
उसे इंसानियत का अहसास जरूर करा देना।
-
जब कभी अपने ज्ञान पर अभिमान हो,
एक बार मेन्टल अस्पताल होके आ जाना।
और....
जब भी आपको अपने ज्ञान का गुमान हो,
किसी अशिक्षित को मुफ्त में पड़ा देना..|

---- Ankit Kumar

Wednesday, November 5, 2014

Jab Main Chhota Tha (जब मैं छोटा था)




जब मैं छोटा था

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जब मैं छोटा था,

शायद दुनिया

बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है
मेरे घर से "स्कूल" तक का
वो रास्ता,
क्या क्या
नहीं था वहां,
चाट के ठेले,
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,
अब वहां
"मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी
सब सूना है..
शायद
अब दुनिया
सिमट रही है...
.
.
.
जब
मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं...
मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी
"साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो
हर शाम
थक के चूर हो जाना,
अब
शाम नहीं होती,
दिन ढलता है
और
सीधे रात हो जाती है.
शायद
वक्त सिमट रहा है..
जब
मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी
हुआ करती थी,
दिन भर
वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो
दोस्तों के
घर का खाना,
वो
लड़कियों की
बातें,
वो
साथ रोना...
अब भी
मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती
जाने कहाँ है,
जब भी
"traffic signal"
पर मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और
अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,
होली,
दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS या फेसबुक सन्देश आ जाते हैं,
शायद
अब रिश्ते
बदल रहें हैं..
.ं
जब
मैं छोटा था,
तब खेल भी
अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई,
लंगडी टांग,
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
facebook, office, whatsaap
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद
ज़िन्दगी
बदल रही है.
.
.
जिंदगी का
सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अकसर क़ब्रिस्तान के
बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है...
"मंजिल तो
यही थी,
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है..
अब
बच गए
इस पल में..
तमन्नाओं से भर
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
मेरे दोस्त..

--- Ankit Kumar